नज़राना इश्क़ का (भाग : 27)
विक्रम के साथ चलते हुए जाह्नवी अब भी उलझन में पड़ी हुई थी, विक्रम एकदम चुप था, जिस कारण से जाह्नवी की उलझन और बढ़ती जा रही थी, 'वह क्या कहेगा' जाह्नवी इसी चिंता में डूबती चली जा रही थी, उससे अब बिल्कुल भी पेशेंस नहीं रखा जा रहा था, उसके चेहरे पर उत्तेजना और चिंता की लकीरें उभर आई थीं।
"तुम अब भी गुस्सा हो?" जाह्नवी ने विक्रम से पूछा, हालांकि बाहरी लड़को से कम बातचीत होने के कारण उसे यह सब अटपटा लग रहा था मगर वो अपने दिल में उत्पन्न हुए उस ग्लानि भाव को रोक पाने में असमर्थ थी जिसे मिटाने की उसकी सभी कोशिशें असफल होती जा रही थीं।
"किसलिए…!" विक्रम अनजान बनते हुए उससे पूछा।
"तुम्हें पता है विक्रम! मैं सच में वैसा नहीं करना चाहती थी। जानती हूँ तुम्हें बहुत हर्ट किया है पर प्लीज…!" जाह्नवी नम आंखों से आस भरी नजर लिए उसकी ओर देखते हुए बोली।
"कोई बात नहीं, तुमने आलरेडी सब कह दिया है।" विक्रम धीमे से मुस्कुराते हुए बोला।
"पर मेरा दिल नहीं मानता कि तुम दोनों ने मुझे माफ़ कर दिया, ये चुभता है यार मुझे…! बहुत दर्द होता है…! अब तो हम दोस्त हैं ना.. प्लीज..!" जाह्नवी लगभग रोते हुए बोली, उसकी आँखों में आत्मग्लानि और पश्चताप के भाव नजर आ रहे थे।
"मैं जानता हूँ जाह्नवी! गलती हो जाती है, आखिर हम सब इंसान हैं, और इंसानों से गलतियां होना आम बात है, मगर उसे स्वीकार करना बेहद कठिन.. तुमने कर लिया मेरे लिए इतना ही बहुत है…! हाँ मैं तुम्हें निमय के जितना नहीं जानता पर इतना जरूर जनता हूँ कि तुम दिल की बुरी तो बिल्कुल भी नहीं हो।" विक्रम धीमे से मुस्कुराते हुए बोला, बातें करते हुए वे पार्क में लगे फौव्वारे के करीब से पार्क से सटे कैंटीन की ओर बढ़ रहे थे।
"पक्का न..!" जाह्नवी चहकते हुए बोली, उसकी नम आंखों में अब चमक नजर आ रही थी।
"कुछ जख्म अपने निशान को हमेशा के लिए छोड़ जाते हैं, पर इसका मतलब ये नहीं कि वो हमेशा दर्द ही करता रहेगा। अगर तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारा दोस्त हूँ तो इसका मतलब है कि हमारे बीच के सारे गिले शिकवे खाली गड्ढे में जा चुके हैं!" विक्रम, जाह्नवी को समझाते हुए हँसकर बोला।
"हाँ…! ठीक है, हम तो दोस्त हैं ना..!" जाह्नवी ने नासमझी से अपने गले को झटकते हुए बोली।
"नहीं.. दुश्मन हैं, तभी तो यहां साथ साथ हैं..!" विक्रम अपने मुँह पर हाथ रख जोर जोर से हँसता हुआ बोला। "समझ नहीं आता क्लास की टॉपर लड़की इतनी बुद्धू कैसे है…!"
"ऐ मिस्टर….!" जाह्नवी तर्जनी उंगली से उसकी ओर इशारा कर गुस्से से चेतावनी भरे लहजे में बोली, जिसे देखकर विक्रम मुस्कुराने लगा। "वैसे भी मैं पढ़ाई में अव्वल हूँ, दोस्ती में थोड़े…!" विक्रम को मुस्कुराते देख जाह्नवी कंधे उचकाकर शांत स्वर में बोली।
"हाँ पर तुम दोस्ती में भी टॉप करोगी..! यकीन है मुझे..!" विक्रम उसकी आँखों में देखता हुआ बोला।
"अच्छा जी..! इतना यकीन..!" जाह्नवी मुँह बनाकर उसे घूरते हुए बोली।
"हाँ..! क्योंकि तुम जो भी करती हो, पूरी शिद्दत से करती हो… दोस्ती भी कितनी शिद्दत से निभाओगी तुम्हें खुद कुछ पता नहीं है..!" विक्रम अब भी लगातार मुस्कुराता जा रहा था, यह सुनकर जाह्नवी शर्मा गयी।
"तो क्या मेरी एक हेल्प करोगे…!" जाह्नवी ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा। "अपने दोस्त की हेल्प…?"
"हूँ क्या है…!" विक्रम ने सामान्य भाव से कंधे उचकाए।
"शायद तुम्हें पता होगा.. मुझे नहीं पता कैसे कहूँ..!" जाह्नवी कुछ सोचते हुए बोली। तभी शॉप कीपर ने उनके हाथ में पानी का बोतल और कुछ चिप्स के पैकेट पकड़ाए। "अच्छा ये पकड़ो.. मैं पैसे दे लूँ!" जाह्नवी ने सबकुछ विक्रम को पकड़ाते हुए कहा।
"अरे यार ऐसे कैसे..! आज पहली बार हम घूमने आए हैं.. मतलब हम सब दोस्त..! आज का खर्चा मैं ही करूँगा, वैसे भी कॉलेज में तुमने ही खर्चा किया था।" विक्रम अपना पर्स निकालते हुए बोला।
"हिसाब अच्छा है मल्होत्रा जी आपका..!" जाह्नवी मुँह बनाकर बोली।
"जी बिल्कुल शर्मा जी, अब चलो..!" विक्रम चिप्स के पैकेट उसे पकड़ाते हुए बोला।
"हूँ…!" जाह्नवी चिप्स लेते हुए उसके साथ चलने लगी।
"अच्छा तुम कुछ कहने वाली थी न…!" विक्रम ने पूछा।
"अरे नहीं तो, जल्दी चलो भाई और फरी वेट कर रहे होंगे।" जाह्नवी तेज कदमों से चलते हुए बोली।
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दूसरी तरफ़ जाह्नवी और विक्रम के जाने के बाद भी निमय और फरी में कोई बात शुरू नहीं हुई थी। फरी नजरें झुकाए जमीन की ओर देख रही थी वहीं निमय फरी की ओर देखने से भी कतरा रहा था, दिल कह रहा था थोड़ी हिम्मत कर ले लेकिन दिल की वो ख्वाहिश दिल से आगे न बढ़ पा रही थी। दोनो अजीब सा महसूस कर रहे थे, समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहें! दोनों ही एक दूसरे के ख्यालों से अनजान थे। कुछ सोचते हुए निमय खड़ा हो गया, ठीक उसी समय फरी भी खड़ी हो गयी।
"क...क्या हुआ?" निमय ने स्वयं को शान्त रखते हुए पूछा।
"कुछ नहीं..! आप क्यों खड़े हो गए?" फरी ने झुकी निगाहों से पूछा।
"बस ऐसे ही, बैठे बैठे थक गया था!" निमय बोलते बोलते बेतुका सा जवाब दे गया, जिसपर फरी हँसने लगी। निमय की निगाहें फिर उस मासूम चेहरे पर गड़ गयीं।
"क्या हुआ आपको..!" उसको ऐसे देखते देख फरी बोली।
"कुछ नहीं..!" निमय झेंपता हुआ बोला।
"क्यों न जब तक भाई और जाह्नवी आ जाते तब तक हम कुछ बातें करें..!" फरी काफी सोचने के बाद बोली।
"हाँ.. तो क्या बात करें..!" निमय उसकी आँखों में झाँकता हुआ बोला।
"कुछ भी..! आप अपने बारे में बताओ..!" फरी ने जानने की इच्छा से कहा।
"मैं अपने बारे में क्या बताऊँ..! मैं एक साधारण सा लड़का हूँ जिसकी दुनिया उसका परिवार और बहन है.. और अब तुम भी….!" निमय आखिरी शब्दों को दबाकर इतना धीरे बोला कि उसके गले से सांसो के अतिरिक्त और कुछ बाहर न आया।
"मेरे पापा एक साधारण से क्लर्क हैं, पर वे इतना कमा लेते हैं जितने में हम सब खुशी से रह सकें। अपने पूरे परिवार में मम्मी पापा और बहन के अलावा किसी को नहीं जानता, दादी दादा को देखना तो छोड़ो उनका जिक्र तक नहीं सुना है। दो - तीन साल पहले ही पापा का ट्रांसफर यहां हुआ इसलिए हम यही आ गए और सालभर के मेहनत और अब तक के टोटल बचत को मिलाने के बाद हमने यहां घर बनवा लिया।" निमय लंबी साँस छोड़ते हुए हाथ फैलाकर बोला। फरी बस उसकी आँखों में देखती रही, इस वक़्त उसे अजीब सा सुकून महसूस हो रहा था।
"और आप अपनी बताओ…!" फरी को चुप देख निमय बोला।
"आप मुझे तुम ही बोला करो, वही अच्छा लगता है!" फरी मुस्कुराकर बोली।
"पर बदले में तुमको भी मुझे तुम बोलना होगा!" निमय मुस्कुराया। "और हां..! मेरे सामने कोई बहाना नहीं चलेगा!"
"कोशिश करूंगी..!" फरी शरमाते हुए बोली।
"तो तुम अपने बारें में बताओ…!" निमय ने फिर पूछा।
"मेरे बारे में बताने के लिए कुछ है ही नहीं, बस ऐसी ही साधारण सी लड़की हूँ मैं भी…!" फरी बात को टालते हुए बोली।
"अच्छा ठीक है, नहीं बताना तो मत बताओ, दोस्त भी नहीं समझते आप मुझे…!" निमय का चेहरा मुरझा सा गया।
"नहीं ऐसा नहीं हैं..! अब आप.. तुम ऐसा मत बोलो प्लीज..!" फरी ने कहा। "मैं आपको… म..मतलब तुम्हें सबकुछ जरूर बताऊंगी..! पर बाद में…!" फरी अचानक से व्यग्र हो उठी, निमय का उतरा चेहरा उससे देखा नहीं जा रहा था।
"हां ठीक है..!" निमय बुझे स्वर में बोला।
"अब प्लीज ऐसे सैड तो ना हो! पक्का प्रोमिस आपको सबकुछ बताऊंगी…!" फरी उसकी आँखों में देखते हुए बोली।
"हाँ ठीक है…!" निमय भारी स्वर में बोला। फरी लगातार उसे देखती जा रही थी। "एक बात बताऊं तुम न न चाहते हुए भी बार बार आप बोले जा रही हो… हाहाहा..!" निमय जोर जोर से हँसते हुए बोला, यह सुनते ही फरी झेंप गयी, उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया।
"ठीक है... ! जानता हूँ आदत है, बदलने में वक़्त लगेगा, अभी हमारी दोस्ती भी तो नई है।" निमय ने फरी को सामान्य करने के इरादे से कहा।
"दोस्ती नई या पुरानी नहीं होती निमय जी! दोस्ती बस दोस्ती होती है…! दुनिया में हर चीज समय के साथ बढ़ती या बदलती है.. पर दोस्ती कभी नहीं..!" फरी एक शब्द पर जोर देते हुए मुस्कुराकर बोली।
"हाँ ठीक है, अब तो हम पक्के वाले दोस्त हैं ना..!" निमय हँसते हुए बोला। इतनी बात कर लेने के बाद उसका दिल भी हल्का महसूस कर रहा था।
"आपको अब भी शक है क्या..? मतलब तुम को…!" फरी बनावटी गुस्सा करते हुए बोली।
"अरे नहीं..! अब फटाफट नंबर एक्सचेंज करो..!" निमय ने झेंपते हुए कहा।
"मैंने जाह्नवी को तो दिया था न..!" फरी ने सवालियां निगाहों से उसकी ओर देखा।
"हाँ! पर मुझे तो नहीं ना..! मुझे सीधा तुमसे ही चाहिए था, जब तुम मान लो कि हम दोस्त हैं..!" निमय ने अपने होंठो पर हल्की मुस्कान लिए हुए कहा।
"हूँ…!" कहते हुए फरी अपना नंबर उसके फोन में टाइप कर खुद को कॉल कर दी, ताकि दोनो के पास एक दूसरे का नंबर चला जाये।
"थैंक यू..!" निमय ने मुस्कुराकर कहा।
"नॉट अलाउड..!" फरी हँसते हुए बोली। अब तक जाह्नवी और विक्रम भी चिप्स और पानी की बोतल लेकर वहां आ चुके थे।
"तो क्या चल रहा है…!" विक्रम ने दोनों की ओर देखते हुए हँसते हुए पूछा।
"आपका इंतेज़ार भाई..! आपको पता है कि मेरे पेट में कितने चूहे दौड़ रहे है..!" फरी अपना पेट सहलाते हुए बोली।
"अब तुम्हारे पेट के चूहे मैं कैसे गिनूंगा…!" विक्रम ने बैठते हुए मुँह बनाया।
"उसे भूख लगी है ऐसा बोला उसने..!" जाह्नवी, फरी के पास बैठते हुए उसके हाथ में चिप्स के पैकेट थमाकर फरी की साइड लेते हुए बोली।
"जिसके पेट में हाथी दौड़ता है उससे ज्यादा भूख के बारे में कौन जानेगा…!" निमय जाह्नवी को देखकर उसे तंग करते हुए बोला। जाह्नवी उठकर निमय के पीछे भागी, निमय उठते हुए वहां से दूर भाग खड़ा हुआ।
"अरे आ जाओ कुछ चख लो, पेट तो घर ही भरेगा, घर भी तो जाना है।" विक्रम हँसते हुए बोला।
"हाँ ये भी ठीक है, अब जल्दी से सब बैठ जाओ, वरना फिर मुझे दोष न देना!" निमय वहीं पास बैठता हुआ बोला।
"खड़ी बस मैं हूँ घोंचू…! घर चल फिर बताती हूँ..!" जाह्नवी, निमय का कान मरोड़ते हुए बोली, निमय के मुँह से सिसकारी फुट पड़ी, यह देखकर फरी और विक्रम दोनो जोर जोर से हँसने लगे। फिर सभी आराम से बैठकर छीना झपटी करते हुए खाने पीने लगे।
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उदयपुर का बेहद भीड़भाड़ वाला इलाका, जहां एक कुर्सी पर राजा बैठा हुआ था, उसके आसपास दो लोग खड़े थे, जो शक्ल से सड़कछाप लग रहे थे। राजा उन दोनों पर बरस रहा था।
"क्या सच कहा तुमने..?" राजा ने उनसे फिर पूछा।
"कसम खाय रहें हैं बाबू साब! वो छोकरा किसी और लड़की के साथ बैठ के बात कर रहा था।" उन में से एक अपने गले को पकड़कर कसम खाते हुए बोला।
"वो यही लड़का था न?" राजा ने अपने मोबाइल से एक तस्वीर दिखाते हुए पूछा, वह निमय की तस्वीर थी।
"हाँ साब! सौ प्रतिशत वही छोकरा है, वहीं पार्क में बैठ के बतियाये रहा। हमारी नजर कबहुँ धोखा नहीं खाय सकत है।" दूसरा व्यक्ति जो थोड़ा प्रौढ़ जान पड़ता था उसने कहा।
"यानी कि मेरी शिक्षा को धोखा देने के बाद अब किसी और के साथ मजे उड़ा रहा है! कसम महादेव की, तुम्हारा वो हश्र करूँगा की तुम्हारी सात पुश्तें तक कांप जाएंगी…!" राजा के तिरपन सुर्ख हो गए, उसके लहजें में बदले की भावना हिलोरें मार रही थी।
क्रमशः….!
अफसाना
20-Feb-2022 04:35 PM
इंटरेस्टिंग
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मनोज कुमार "MJ"
28-Feb-2022 01:44 PM
Thank you
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सिया पंडित
04-Feb-2022 12:07 AM
Bahut badhiya kahani...
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मनोज कुमार "MJ"
05-Feb-2022 09:40 AM
Thank you so much ❤️
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